परोपकार का यश

सुमंत और सुबीर नाम के दो भाई थे । दोनों का अलग अलग सफल और समृद्ध

व्यापार था । परंतु भ्रातृ प्रेम कारण दोनों एक ही मकान मे साथ साथ रहते थे । संयुक्त परिवार का एक कारण और भी था वो ये कि जब से दोनों भाइयों ने होश सम्हाला था, तभी से उन्होने देखा था कि एक महात्माजी प्रत्येक वर्ष उनके पिता के घर आकर एक सप्ताह के लिए ठहरते थे । दोनों भाइयों का प्रेम देख इन्हीं महात्मा जी ने उन्हें सदैव संयुक्त परिवार मे रहने की सलाह दी थी । महात्माजी के लिए घर मे एक कमरा विशेष रूप से सज्जित था जो कि साल के बाकी दिन पारिवारिक विचार विमर्श हेतु प्रयोग किया जाता था । हालांकि अब महात्मा जी वृद्ध हो चले थे । परंतु फिर भी प्रत्येक वर्ष आते थे और उन्हीं के परामर्श से दोनों भाई अपना साल भर का कार्यक्रम निश्चित करते थे ।

दोनों को एक ही शौक था और वो था, दूसरों की मदद करना । परंतु जाने क्या कारण था कि जब सुमंत किसी की मदद करता तो लोग बहुत वाह वाह करते और उसका यश फैलता । परंतु जब सुबीर किसी की मदद करता तो लोग उसपर ज्यादा ध्यान नहीं देते थे । धीरे धीरे इस बात से सुबीर काफी चिंतित रहने लगा । सुमंत भी अपने भाई की इस चिंता से अनभिज्ञ नहीं था ।

कहानी संग्रह “भेद भरी…” से