बड़प्पन (रोब? क़ाबू? इख्तियार?)

पाँच वर्ष का गौरव उछलता कूदता स्कूल से आया तो उसे देखते ही पिता ने आवाज़ दी –‘गूल्लू !’

-‘हाँ डैड !’

बाहर बैठक मे अंकल बैठे हैं उन्हें जा के नमस्ते करो और तुम्हें स्कूल से जो इनाम वगैरह मिले हैं उन्हे दिखाओ तबतक मैं बाथरूम से आता हूँ ।

वो अपने स्कूल का बस्ता कंधे पर लिए लिए ही बैठक की तरफ जाते हुए बोला -‘अच्छा डैड !’

गौरव को घर मे सब प्यार से गुल्लू कहते थे । वो घर मे हो तो चारो तरफ से गुल्लू गुल्लू की आवाजें आती रहती हैं ।

–‘गूल्लू ! मेरा चश्मा देना ।’

-‘जी डैड ।’

–‘गूल्लू ! जरा बेटा ये पर्दा खींच देना ।’

-‘जी मम ।’

समय बीतता गया और गौरव 16 वर्ष का हो गया ।

–‘गूल्लू ! इन्टरमीडिएट मे जो ऑप्शनल सबजेक्ट (ऐच्छिक विषय) उपलब्ध हैं जरा उनकी लिस्ट ले के आओ और बताओ कि तुम कौन से लेना चाहते हो ।’

-‘जी डैड ।’

रात का यही कोई साढ़े आठ का वक्त होगा । गौरव अभी अभी कहीं बाहर से आया है । बैठक मे दोस्तों के साथ गप्पें लड़ाते पिता ने देखा तो आवाज़ दी ।

-‘गूल्लू ! इतनी देर से कहाँ थे । बता के जाया करो ।’

-‘जी डैड ।’

गौरव ने सहम के कहा और अंदर चला गया । पिता ने गर्व से अपने दोस्तों की ओर देखा जैसे कहना चाहते हों देखा मेरा रोब ।

कहानी संग्रह “भेद भरी…” से