शोषण श्रृंखला – एक नासूर

अभी कुल मिला के पाँच वर्ष हुए हैं गिरीश को, इस बड़ी कंपनी मे काम करते हुए और इतने अल्प समय मे ही, वो अपनी मेहनत से प्रबन्धक के पद पर पहुँच गया है । घर मे बस दो ही प्राणी हैं वो और उसकी पत्नी सरिता । अभी उनके कोई बच्चा भी नहीं है । घरेलू छोटे मोटे कामों मे, सरिता की मदद के लिए एक नौकरानी है । उसकी मदद से सरिता सबेरे बढ़िया नाश्ता बनाती है । फिर दोनों मियाँ बीवी जम के नाश्ता करते हैं । गिरीश ऑफिस चला जाता है और सरिता घर मे ताला डाल, नौकरानी को साथ ले कभी बाजार तो कभी कहीं और सैर सपाटे को निकल जाती हैं अथवा बाहर वरान्डे मे पड़े झूले पर बैठ कर उपन्यास पढ़ती है । सरिता यदि कहीं जाती भी है तो भी शाम को पति के आने से पहले वापस आ पति के साथ चाय पीती है । उसके बाद जितनी देर मे गिरीश नहा धो के फ्रेश होता है उतनी देर मे सरिता नौकरानी की मदद से फटाफट खाना बना लेती है, दो प्राणियों का खाना ही कितना बनना होता है । मौहल्ले के आस पड़ोस की औरतें अक्सर अपनी बातचीत मे गिरीश की पत्नी सरिता की दिनचर्या का ज़िक्र करती हैं कि इसके कितने मजे हैं । यहाँ तक कि ये खबरें उड़ते उड़ते मोहल्ले मे रहने वाली समाज सेविका मिसेस चावला तक पहुँच चुकी हैं । बस फिर क्या था एक दिन मिसेस चावला सरिता से मिलने जा पहुँची ।

कहानी संग्रह “भेद भरी…” से