मृगमरीचिका

चारो ओर स्वजन व स्वअस्तित्व

मैं तू तेरा मेरा का संघर्ष

दिखता है इस जीवन की धूप में ।

परन्तु कितना भयानक है

अस्तित्वहीनता का अहसास

तुम्हारे जाने के बाद,

किंचित मात्र भी अन्तर न पड़ेगा ।

धरती आकाश,

जैसे का तैसा रहेगा ।

जीवित रहेंगे तुम्हारे स्वजन भी

सम्भवतया अधिक व्यवस्थित रूप में ।