एक शहर मे धर्मदेव नाम के एक अत्यंत धार्मिक, सज्जन धनी व्यक्ति रहते थे । उनका शहर मे काफी प्रभाव और मान था । लोग आदर से उन्हें धर्मदेव जी कहते और उनकी प्रशंसा करते न थकते थे । उसी शहर मे एक दूसरा हीरालाल नाम का धूर्त चालाक धनी भी रहता था । दोनों एक दूसरे के परिचित थे और एक दूसरे के घर आना जाना भी था । सज्जन व्यक्ति के नाम और मान को देख चालाक व्यक्ति के मन मे भी उनके जैसा बनने की लालसा ज़ोर मारती थी । परन्तु इसके हेतु वो कोई वास्तविक परिश्रम करने के बजाए केवल हर काम मे धर्मदेव जी की नकल करता रहता था । हीरालाल को हरदम घेरे रहने वाले, उसके चाटुकार मित्र ये बात जानते थे और अपने मनोरंजन और उसकी खिल्ली उड़ाने की नियत से हरदम उसके सामने धर्मदेव जी की तारीफ करते रहते थे कि देखो वो कितने मशहूर है, उनका कितना प्रभाव है, वगैरह वगैरह ।
कहानी संग्रह “भेद भरी…” से