Category Archives: Hindi Short Story

तरफ़दारी

विवाह के पहले भी शाश्वत और शिखा एक ही दफ्तर मे काम करते थे । दोनों के घर भी एक ही मोहल्ले मे पास पास ही थे । शाश्वत की छोटी बहन शशि, शिखा और उसकी छोटी बहन ज्योति एक ही स्कूल मे पढ़ी व साथ साथ पली बढ़ी थी । तीनों मे प्रगाढ़ मित्रता थी । परिवारों मे भी घनिष्ठता थी । इसीलिए जब शिखा की नौकरी शाश्वत के दफ्तर मे लगी तो उसके घरवालों को दफ्तर घर से बहुत दूर होने के बावजूद बड़ी खुशी हुई क्योंकि शाश्वत और उसकी कार के कारण न सिर्फ आने जाने मे सुविधा बल्कि

कहानी संग्रह “भेद भरी…” से

कौए

अधीर अपने नाम के अनुसार ही एक स्वच्छंद, उच्शृंगल और उद्दंड प्रकृति का व्यक्ति है कौवे की तरह चौकन्ना, चालाक परन्तु उतना ही सहजबुद्धि से हीन । चालाकी पकड़े जाने पर वो और उसके घरवालों का तर्क होता है कि बेचारे को इस बात का ज्ञान ही नहीं कि वो चालाकी या कोई गलत कार्य कर रहा था इसीलिए पकड़ा गया यानिकि वो और उसके घरवालों ने बुद्धिहीनता को भोलेपन की संज्ञा प्रदान की हुई थी । अपनी मूर्खता के कारण किसी संस्था, संगठन या व्यक्ति से धोखा खाने पर उस संस्था, संगठन या व्यक्ति से सवाल करने के बजाय, उसी युक्ति से किसी और को उसी प्रकार के धोखे मे फँसा…

कहानी संग्रह “भेद भरी…” से

कर्म प्रधान

दिन का करीब 10 बजे का समय होगा । गुरुकुल मे गुरुदेव ने अभी अभी अपनी कक्षा सम्पन्न की है । छात्र एक एक कर उठने और गुरुदेव को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद ले अपने लिए पूर्व निर्धारित गुरुकुल के दैनिक कार्यों पर जाने लगे । प्रत्येक दिन की भाँति गुरुदेव ने आँखें बंद कर लीं और ध्यान मुद्रा मे सबको समान रूप से आशीर्वाद देने लगे । थोड़ी ही देर मे कुटिया मे शांति छा गयी परन्तु गुरुदेव ने अनुभव किया कि अभी भी कुटिया मे कोई है । उन्होंने नेत्र खोले तो देखा दो छात्र रणवीर सिंह और नत्थी लाल सर झुकाये विनीत भाव से अभी भी वहीं खड़े…

कहानी संग्रह “भेद भरी…” से

बड़प्पन (रोब? क़ाबू? इख्तियार?)

पाँच वर्ष का गौरव उछलता कूदता स्कूल से आया तो उसे देखते ही पिता ने आवाज़ दी –‘गूल्लू !’

-‘हाँ डैड !’

बाहर बैठक मे अंकल बैठे हैं उन्हें जा के नमस्ते करो और तुम्हें स्कूल से जो इनाम वगैरह मिले हैं उन्हे दिखाओ तबतक मैं बाथरूम से आता हूँ ।

वो अपने स्कूल का बस्ता कंधे पर लिए लिए ही बैठक की तरफ जाते हुए बोला -‘अच्छा डैड !’

गौरव को घर मे सब प्यार से गुल्लू कहते थे । वो घर मे हो तो चारो तरफ से गुल्लू गुल्लू की आवाजें आती रहती हैं ।

–‘गूल्लू ! मेरा चश्मा देना ।’

-‘जी डैड ।’

–‘गूल्लू ! जरा बेटा ये पर्दा खींच देना ।’

-‘जी मम ।’

समय बीतता गया और गौरव 16 वर्ष का हो गया ।

–‘गूल्लू ! इन्टरमीडिएट मे जो ऑप्शनल सबजेक्ट (ऐच्छिक विषय) उपलब्ध हैं जरा उनकी लिस्ट ले के आओ और बताओ कि तुम कौन से लेना चाहते हो ।’

-‘जी डैड ।’

रात का यही कोई साढ़े आठ का वक्त होगा । गौरव अभी अभी कहीं बाहर से आया है । बैठक मे दोस्तों के साथ गप्पें लड़ाते पिता ने देखा तो आवाज़ दी ।

-‘गूल्लू ! इतनी देर से कहाँ थे । बता के जाया करो ।’

-‘जी डैड ।’

गौरव ने सहम के कहा और अंदर चला गया । पिता ने गर्व से अपने दोस्तों की ओर देखा जैसे कहना चाहते हों देखा मेरा रोब ।

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शोषण श्रृंखला – नासूर का इलाज़

 चाय का घूँट लेते हुए गिरीश ने कहा –‘सरिता, आज तुम एक हादसे के बेहद करीब से गुज़री हो ये दूसरी बात है कि कोई हादसा नहीं हुआ परन्तु जीवनलाल और बृजभूषण नाम के नासूर इस शहर मे मजबूती से जमे हैं, इस बात से तो इंकार नहीं किया जा सकता ।’

-‘ये बात तो है । पर सतर्क रहने के अलावा हम कर भी क्या सकते हैं ?’

-‘नहीं, बुराई देख कर भी तटस्थ रहना अपराध है । नासूर का यदि इलाज न किया जाय तो वो फैलता जाता है । कल कोई दूसरी महिला उनके चक्कर मे…..।’

सुबह से अब तक हुई घटनाओं से परेशान सरिता को अब इस सम्बन्ध मे बात करने मे अड़चन महसूस हो रही थी इसलिए उसने बात खत्म करने के उद्देश्य से बीच मे ही टोकते हुए कहा –‘अभी मेरी मनस्थिति ऐसी नहीं है कि मैं कुछ सोच पाऊँ….।’

-‘मुझे अहसास है । दरअसल मैंने कुछ सोचा है ।’ गिरीश बीच मे ही बोल पड़ा ।

-‘क्या?’

-‘तुम्हें मेरा मित्र अजित तो याद होगा ?’

-‘कौन वो डी एस पी अजित प्रताप ?’

-‘हाँ वही । वो गुप्तचर विभाग मे एस पी होकर इसी शहर मे आ गया है ।’

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शोषण श्रृंखला – एक नासूर

अभी कुल मिला के पाँच वर्ष हुए हैं गिरीश को, इस बड़ी कंपनी मे काम करते हुए और इतने अल्प समय मे ही, वो अपनी मेहनत से प्रबन्धक के पद पर पहुँच गया है । घर मे बस दो ही प्राणी हैं वो और उसकी पत्नी सरिता । अभी उनके कोई बच्चा भी नहीं है । घरेलू छोटे मोटे कामों मे, सरिता की मदद के लिए एक नौकरानी है । उसकी मदद से सरिता सबेरे बढ़िया नाश्ता बनाती है । फिर दोनों मियाँ बीवी जम के नाश्ता करते हैं । गिरीश ऑफिस चला जाता है और सरिता घर मे ताला डाल, नौकरानी को साथ ले कभी बाजार तो कभी कहीं और सैर सपाटे को निकल जाती हैं अथवा बाहर वरान्डे मे पड़े झूले पर बैठ कर उपन्यास पढ़ती है । सरिता यदि कहीं जाती भी है तो भी शाम को पति के आने से पहले वापस आ पति के साथ चाय पीती है । उसके बाद जितनी देर मे गिरीश नहा धो के फ्रेश होता है उतनी देर मे सरिता नौकरानी की मदद से फटाफट खाना बना लेती है, दो प्राणियों का खाना ही कितना बनना होता है । मौहल्ले के आस पड़ोस की औरतें अक्सर अपनी बातचीत मे गिरीश की पत्नी सरिता की दिनचर्या का ज़िक्र करती हैं कि इसके कितने मजे हैं । यहाँ तक कि ये खबरें उड़ते उड़ते मोहल्ले मे रहने वाली समाज सेविका मिसेस चावला तक पहुँच चुकी हैं । बस फिर क्या था एक दिन मिसेस चावला सरिता से मिलने जा पहुँची ।

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अपराधबोध

धनंजय शर्मा ने आज सफलता के वो सभी लक्ष्य प्राप्त कर लिए हैं जो उसने अपने लिए निर्धारित किए थे । एक छोटी सी फैक्ट्री मे ट्रेनी (प्रशिक्षु) इंजिनियर (अभियंता) से प्रारम्भ कर, आज वो एक बहुत बड़े सरकारी प्रतिष्ठान का चीफ (मुख्य) इंजिनियर  है । आज अपने दफ्तर मे बैठे बैठे उसे याद कर रहा था अपना वो बीता हुआ समय, जब वो एक नवजवान इंजिनियर था, हर समय कुछ कर गुजरने की तमन्ना लिए, ऊर्जा और उत्साह से भरा हुआ ।

अचानक एक घटना को याद कर वो थोड़ा खिन्न हो उठा । बात तब की है जब वो एक सरकारी प्रोसेस फैक्ट्री मे असिस्टेंट इंजिनियर था । इस फैक्ट्री मे कच्चे माल को प्रोसेस करने के बाद जो अवशेष बचता था उसे ही फैक्ट्री चलाने के लिए ईंधन के रूप मे इस्तेमाल किया जाता था ।

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बड़े होने का भरम – दुसरा नज़रिया

नीरजा के मायके मे हुई घटना के तीसरे दिन करीब शाम के चार बजे अनंत अपने दफ्तर मे बैठा कुछ काम कर रहा था कि तभी नीरजा का फ़ोन आया –‘अनंत जोरावरगंज मे बहुत बड़ी कपड़ों की सेल लगी है मैं जा रही हूँ ।’

‘ठीक है जाओ पर हो सके तो तो जल्दी आ जाना, क्योंकि अंधेरा होने के बाद वहाँ घटिया और उचक्के टाइप के लोग बहुत घूमते हैं इसलिए अगर अंधेरा होने लगे तो ऑटो से न आना, मुझे फ़ोन कर देना मैं आकर तुम्हें ले जाऊंगा ।’

‘ठीक है तुम चिंता न करो ।’

अनंत करीब छ: बजे घर पहुँचा तो पाया कि नीरजा अभी तक घर नहीं पहुँची थी । ये देख वो घबराया क्योंकि अंधेरा घिरने लगा था और अभी तक नीरजा का फ़ोन भी नहीं आया था । उसने नीरजा के मोबाइल पर रिंग करने की कोशिश की, तो उसका मोबाइल ऑफ निकाला । जैसे जैसे समय बीतता जा रहा था उसकी चिंता बढ़ती जा रही थी । छ: से हुए साढ़े छ: और साढ़े छ: से सात । अब अनंत का धैर्य जवाब देने लगा । नीरजा ने ये भी नहीं बताया था कि वो अकेली गयी है या किसी सहेली के साथ । उसकी जितनी भी सहेलियों के फ़ोन या मोबाइल नम्बर अनंत को पता थे, एक तरफ से उसने सबको फ़ोन मिलाना शुरू किया । सबसे पहले पड़ोस की रीमा को फ़ोन मिलाया तो रीमा घर पर ही थी –‘हॅलो !’

‘रीमा भाभी मैं अनंत ।’

‘हाँ अनंत कहो कैसे हो ।’

‘ठीक हूँ भाभी आप नहीं गयी नीरजा के साथ जोरावरगंज की सेल मे ।’

‘मेरी तो आज नीरजा से बात भी नहीं हुई क्योंकि मैं तो आज पूरे दिन सेमिनार मे थी । अभी आई हूँ बड़ी थकान लग रही है ।’

‘ठीक है भाभी आप आराम करें । बाय ।’

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बड़प्पन का भ्रम – एक नज़रिया

नीरजा बेटा! देखो तेरी गैरमौजूदगी मे राजू ने बड़ा खराब रिजल्ट किया है । वापस जाने के पहले उसे थोड़ा पढ़ा देना ।’

नीरजा  बेटा! वापस जाने से पहले जरा सिन्हा अंकल को फ़ोन मिला के मेरे ये जरूरी कागजात समेटवा देना ।

नीरजा बेटा! वापस जाने से पहले बैंक मैनेजर से बात कर ये हिसाब उसे समझा देना ।

अनंत जब भी अपनी पत्नी नीरजा को उसके मायके यानीकि अपनी ससुराल लेकर आता, उसे अपने ससुर और सास के मुँह से कुछ ऐसी ही बातें सुनने को मिलती । वो सोचता कि नीरजा अपने मायके मे सब भाई बहनों मे सबसे बड़ी है, इसलिए विवाह के पहले वही घर की सर्वेसर्वा रही होगी । अब उसके ससुराल चले जाने के कारण घर अव्यवस्थित रहता होगा । जाहिर है इतने दिनों से रुके तमाम कामों मे नीरजा के माता पिता को उसकी मदद की जरूरत होगी और मेरे यहाँ रुकने से उनमें व्यवधान ही होगा, ये सब सोच वो जल्द से जल्द वहाँ से भाग खड़ा होता । फिर वो उसी दिन वहाँ जाता जिस दिन नीरजा को अपने घर वापस आना होता ।

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परोपकार का यश

सुमंत और सुबीर नाम के दो भाई थे । दोनों का अलग अलग सफल और समृद्ध

व्यापार था । परंतु भ्रातृ प्रेम कारण दोनों एक ही मकान मे साथ साथ रहते थे । संयुक्त परिवार का एक कारण और भी था वो ये कि जब से दोनों भाइयों ने होश सम्हाला था, तभी से उन्होने देखा था कि एक महात्माजी प्रत्येक वर्ष उनके पिता के घर आकर एक सप्ताह के लिए ठहरते थे । दोनों भाइयों का प्रेम देख इन्हीं महात्मा जी ने उन्हें सदैव संयुक्त परिवार मे रहने की सलाह दी थी । महात्माजी के लिए घर मे एक कमरा विशेष रूप से सज्जित था जो कि साल के बाकी दिन पारिवारिक विचार विमर्श हेतु प्रयोग किया जाता था । हालांकि अब महात्मा जी वृद्ध हो चले थे । परंतु फिर भी प्रत्येक वर्ष आते थे और उन्हीं के परामर्श से दोनों भाई अपना साल भर का कार्यक्रम निश्चित करते थे ।

दोनों को एक ही शौक था और वो था, दूसरों की मदद करना । परंतु जाने क्या कारण था कि जब सुमंत किसी की मदद करता तो लोग बहुत वाह वाह करते और उसका यश फैलता । परंतु जब सुबीर किसी की मदद करता तो लोग उसपर ज्यादा ध्यान नहीं देते थे । धीरे धीरे इस बात से सुबीर काफी चिंतित रहने लगा । सुमंत भी अपने भाई की इस चिंता से अनभिज्ञ नहीं था ।

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