(गीत )
वन को उपवन, सहरा को चमन और शब को सुबह क्या कहना
यारा, दुनियाँ से क्या डरना यारा, दुनियाँ से क्या डरना ।
क्या खूब कुलाबे कमज़ोरी आबाद को वीराँ कहते हैं
हाय शराफ़त मजबूरी हम भी तो वाह वाह करते हैं ।
नफ़रत को अदा, हरकत को बदा, और खुद को खुदा क्या कहना
यारा, दुनियाँ से क्या डरना यारा, दुनियाँ से क्या डरना ।
काजल को चुरा लें आँखों से ये हुनर फ़कत ये रखते हैं
मौसम बदले ये न बदले कुछ ऐसी सिफ़त ये रखते हैं ।
बदनाम को बद शुरुआत को हद, हिकमत को शफ़ा क्या कहना
यारा, दुनियाँ से क्या डरना यारा, दुनियाँ से क्या डरना ।
नाकाम हों इनकी गफ़लत से, हर कदम पे ठोकर हम खायें,
हर मौके भोली सूरत बन ये फ़िर से बिचारे बन जायें ।
तो फ़िर गाफ़िल की गफ़लत को मासूम अदा क्या कहना,
यारा, दुनियाँ से क्या डरना, यारा, दुनियाँ से क्या डरना ।
यारा, दुनियाँ से क्या डरना यारा, दुनियाँ से क्या डरना ।