छात्र

कुण्ठाग्रस्त

आज का छात्र,

झिड़क का नहीं दया का पात्र ।

मात पर मात

चोट पर चोट,

शतरंज की पिटी हुई यह गोट ।

किताबों के बोझ से

टूट रही कमर ।

वाह रे धैर्य –

उफ़ नहीं करता मगर ।

पाकर उपाधि हो जाता तैयार ।

दर दर भटकने को

एक और पढ़ा लिखा बेकार ।