नियन्त्रण

दुर्भिक्ष ?

प्रकृति का प्रकोप ।

बेकारी ?

मनुष्य मात्र की अकर्मण्यता ।

दुर्व्यवस्था ?

अराजक तत्वों द्वारा फ़ैलाई हिंसा ।

ऐसी गम्भीर समस्याओं पर,

अपने उबाऊ निष्क्रिय संसार में,

वातानुकूलित कमरे के गलीचे पर

हल्के गुलाबी माहौल और मदिरा के उन्माद में ।

कहता है मेरा गम्भीर बौद्धिक मंत्रण,

निश्चिन्त रहो, है पूरा नियन्त्रण ।

सुलझ सकती है ये सारी उलझन

कह सकता हूँ बेधड़क ।

दुर्भिक्ष मे सहायता, बेकारों को उद्योग, दुर्व्यवस्था पर शासन

सबका है समाधान

मात्र एक सड़क ।

जब चाहे बनवा दें, मगर

कैसे भरेगा फ़िर हमारा घर ?

क्यों करेगा कोई हमारा मान ?

हमें नहीं बन्द करनी अपनी दुकान ।