प्रतिक्रिया

सुनते हैं

स्वदेश का अभिषेक सर्वस्व से करते थे

पर दिखता है लूट का बाजार

सुनते हैं

एक ही घाट था शेर हो या गाय

पर दिखता है सिर्फ़ मत्स्य न्याय ।

सुनते हैं

बाजार भाव समाचारों में

पर दिखता नहीं सामान बाजारों में ।

सुनते हैं—पर—

ऐसे में फ़ूटे गर कुछ ज्वालामुखी जैसा

तो इसमें आश्चर्य कैसा ?