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अपराधबोध

धनंजय शर्मा ने आज सफलता के वो सभी लक्ष्य प्राप्त कर लिए हैं जो उसने अपने लिए निर्धारित किए थे । एक छोटी सी फैक्ट्री मे ट्रेनी (प्रशिक्षु) इंजिनियर (अभियंता) से प्रारम्भ कर, आज वो एक बहुत बड़े सरकारी प्रतिष्ठान का चीफ (मुख्य) इंजिनियर  है । आज अपने दफ्तर मे बैठे बैठे उसे याद कर रहा था अपना वो बीता हुआ समय, जब वो एक नवजवान इंजिनियर था, हर समय कुछ कर गुजरने की तमन्ना लिए, ऊर्जा और उत्साह से भरा हुआ ।

अचानक एक घटना को याद कर वो थोड़ा खिन्न हो उठा । बात तब की है जब वो एक सरकारी प्रोसेस फैक्ट्री मे असिस्टेंट इंजिनियर था । इस फैक्ट्री मे कच्चे माल को प्रोसेस करने के बाद जो अवशेष बचता था उसे ही फैक्ट्री चलाने के लिए ईंधन के रूप मे इस्तेमाल किया जाता था ।

कहानी संग्रह “भेद भरी…” से

बड़े होने का भरम – दुसरा नज़रिया

नीरजा के मायके मे हुई घटना के तीसरे दिन करीब शाम के चार बजे अनंत अपने दफ्तर मे बैठा कुछ काम कर रहा था कि तभी नीरजा का फ़ोन आया –‘अनंत जोरावरगंज मे बहुत बड़ी कपड़ों की सेल लगी है मैं जा रही हूँ ।’

‘ठीक है जाओ पर हो सके तो तो जल्दी आ जाना, क्योंकि अंधेरा होने के बाद वहाँ घटिया और उचक्के टाइप के लोग बहुत घूमते हैं इसलिए अगर अंधेरा होने लगे तो ऑटो से न आना, मुझे फ़ोन कर देना मैं आकर तुम्हें ले जाऊंगा ।’

‘ठीक है तुम चिंता न करो ।’

अनंत करीब छ: बजे घर पहुँचा तो पाया कि नीरजा अभी तक घर नहीं पहुँची थी । ये देख वो घबराया क्योंकि अंधेरा घिरने लगा था और अभी तक नीरजा का फ़ोन भी नहीं आया था । उसने नीरजा के मोबाइल पर रिंग करने की कोशिश की, तो उसका मोबाइल ऑफ निकाला । जैसे जैसे समय बीतता जा रहा था उसकी चिंता बढ़ती जा रही थी । छ: से हुए साढ़े छ: और साढ़े छ: से सात । अब अनंत का धैर्य जवाब देने लगा । नीरजा ने ये भी नहीं बताया था कि वो अकेली गयी है या किसी सहेली के साथ । उसकी जितनी भी सहेलियों के फ़ोन या मोबाइल नम्बर अनंत को पता थे, एक तरफ से उसने सबको फ़ोन मिलाना शुरू किया । सबसे पहले पड़ोस की रीमा को फ़ोन मिलाया तो रीमा घर पर ही थी –‘हॅलो !’

‘रीमा भाभी मैं अनंत ।’

‘हाँ अनंत कहो कैसे हो ।’

‘ठीक हूँ भाभी आप नहीं गयी नीरजा के साथ जोरावरगंज की सेल मे ।’

‘मेरी तो आज नीरजा से बात भी नहीं हुई क्योंकि मैं तो आज पूरे दिन सेमिनार मे थी । अभी आई हूँ बड़ी थकान लग रही है ।’

‘ठीक है भाभी आप आराम करें । बाय ।’

कहानी संग्रह “भेद भरी…” से

बड़प्पन का भ्रम – एक नज़रिया

नीरजा बेटा! देखो तेरी गैरमौजूदगी मे राजू ने बड़ा खराब रिजल्ट किया है । वापस जाने के पहले उसे थोड़ा पढ़ा देना ।’

नीरजा  बेटा! वापस जाने से पहले जरा सिन्हा अंकल को फ़ोन मिला के मेरे ये जरूरी कागजात समेटवा देना ।

नीरजा बेटा! वापस जाने से पहले बैंक मैनेजर से बात कर ये हिसाब उसे समझा देना ।

अनंत जब भी अपनी पत्नी नीरजा को उसके मायके यानीकि अपनी ससुराल लेकर आता, उसे अपने ससुर और सास के मुँह से कुछ ऐसी ही बातें सुनने को मिलती । वो सोचता कि नीरजा अपने मायके मे सब भाई बहनों मे सबसे बड़ी है, इसलिए विवाह के पहले वही घर की सर्वेसर्वा रही होगी । अब उसके ससुराल चले जाने के कारण घर अव्यवस्थित रहता होगा । जाहिर है इतने दिनों से रुके तमाम कामों मे नीरजा के माता पिता को उसकी मदद की जरूरत होगी और मेरे यहाँ रुकने से उनमें व्यवधान ही होगा, ये सब सोच वो जल्द से जल्द वहाँ से भाग खड़ा होता । फिर वो उसी दिन वहाँ जाता जिस दिन नीरजा को अपने घर वापस आना होता ।

कहानी संग्रह “भेद भरी…” से

परोपकार का यश

सुमंत और सुबीर नाम के दो भाई थे । दोनों का अलग अलग सफल और समृद्ध

व्यापार था । परंतु भ्रातृ प्रेम कारण दोनों एक ही मकान मे साथ साथ रहते थे । संयुक्त परिवार का एक कारण और भी था वो ये कि जब से दोनों भाइयों ने होश सम्हाला था, तभी से उन्होने देखा था कि एक महात्माजी प्रत्येक वर्ष उनके पिता के घर आकर एक सप्ताह के लिए ठहरते थे । दोनों भाइयों का प्रेम देख इन्हीं महात्मा जी ने उन्हें सदैव संयुक्त परिवार मे रहने की सलाह दी थी । महात्माजी के लिए घर मे एक कमरा विशेष रूप से सज्जित था जो कि साल के बाकी दिन पारिवारिक विचार विमर्श हेतु प्रयोग किया जाता था । हालांकि अब महात्मा जी वृद्ध हो चले थे । परंतु फिर भी प्रत्येक वर्ष आते थे और उन्हीं के परामर्श से दोनों भाई अपना साल भर का कार्यक्रम निश्चित करते थे ।

दोनों को एक ही शौक था और वो था, दूसरों की मदद करना । परंतु जाने क्या कारण था कि जब सुमंत किसी की मदद करता तो लोग बहुत वाह वाह करते और उसका यश फैलता । परंतु जब सुबीर किसी की मदद करता तो लोग उसपर ज्यादा ध्यान नहीं देते थे । धीरे धीरे इस बात से सुबीर काफी चिंतित रहने लगा । सुमंत भी अपने भाई की इस चिंता से अनभिज्ञ नहीं था ।

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दुश्मन दोस्त

एक कस्बे मे विवेक और हरीश नाम के दो व्यक्ति रहते थे । विवेक किसान था और हरीश नगरपालिका मे बाबू । दोनों के मकान अगल बगल थे । दोनों मे अच्छी दोस्ती थी । शाम को जब हरीश दफ्तर से आता तो दोनों दोस्त, विवेक के खेतों पर सैर को जाते थे । विवेक के मकान के दूसरी ओर पवन नाम का किसान रहता था । विवेक और पवन के मकान भी एक दूसरे से जुड़े हुए थे पर दोनों परिवारों मे छोटी छोटी घरेलू बातों को ले कर आए दिन झगड़ा होता रहता था । इन झगड़ों मे सुगठित शरीर वाले बलिष्ठ पवन के सामने, सामान्य स्वास्थ्य वाले विवेक का पलड़ा कमजोर रहता था । परन्तु ऐसे मौकों पर हरीश उसका साथ देता था, इसलिए झगड़े विकराल रूप तो नहीं लेते थे परंतु मनमुटाव बना रहता था ।

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दंड की अनिवार्यता

एक शहर मे धर्मदेव नाम के एक अत्यंत धार्मिक, सज्जन धनी व्यक्ति रहते थे । उनका शहर मे काफी प्रभाव और मान था । लोग आदर से उन्हें धर्मदेव जी कहते और उनकी प्रशंसा करते न थकते थे । उसी शहर मे एक दूसरा हीरालाल नाम का धूर्त चालाक धनी भी रहता था । दोनों एक दूसरे के परिचित थे और एक दूसरे के घर आना जाना भी था । सज्जन व्यक्ति के नाम और मान को देख चालाक व्यक्ति के मन मे भी उनके जैसा बनने की लालसा ज़ोर मारती थी । परन्तु इसके हेतु वो कोई वास्तविक परिश्रम करने के बजाए केवल हर काम मे धर्मदेव जी की नकल करता रहता था । हीरालाल को हरदम घेरे रहने वाले, उसके चाटुकार मित्र ये बात जानते थे और अपने मनोरंजन और उसकी खिल्ली उड़ाने की नियत से हरदम उसके सामने धर्मदेव जी की तारीफ करते रहते थे कि देखो वो कितने मशहूर है, उनका कितना प्रभाव है, वगैरह वगैरह ।

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धरोहर

एक किसान के दो पुत्र थे दोनों मे बचपन से ही बहुत प्यार था । जोकि समय के साथ और बढ़ता गया । दोनों जवान हुए । बड़े की व्यापार मे रुचि थी  छोटे की खेती मे । बड़े का भाग्य ने बहुत साथ दिया कुछ ही दिनों मे वो बहुत धनवान हो गया । छोटा खेती मे उतना तो न कमा पाता था पर था, वो भी खाता पीता सम्पन्न । दोनों की आर्थिक स्थिति मे फर्क के बावजूद दोनों मे प्यार न केवल बरकरार था बल्कि बढ़ता जाता था । दोनों का विवाह हुआ और संयोगवश दोनों के ही दो दो बेटे भी हुए । दोनों परिवारों मे भी बेहद प्रेम था ।

कहानी संग्रह “भेद भरी…” से